तारिल तुज अंबिका
तारिल तुज अंबिका, कशाला धरिसी मनि शंका !
शंकर-मन रंजिका, हरितसे भव-पातक पंका !
दयावती जी सहज उद्धरी हीन-दीन-रंका
कळिकाळावर जिचा धडधडा झडे विजय-डंका !
शंकर-मन रंजिका, हरितसे भव-पातक पंका !
दयावती जी सहज उद्धरी हीन-दीन-रंका
कळिकाळावर जिचा धडधडा झडे विजय-डंका !
गीत | - | विद्याधर गोखले |
संगीत | - | पं. राम मराठे, प्रभाकर भालेकर |
स्वर | - | शरद जांभेकर |
नाटक | - | मदनाची मंजिरी |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत, या देवी सर्वभूतेषु |
अंबिका | - | जगन्माता / पार्वती. |
पैं | - | निश्चय्यार्थक. |
पंक | - | चिखल. |
भव | - | संसार. |
रंक | - | भिकारी / गरीब. |
रंजवण | - | मनाचे रंजन करणारे. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.