स्वार्थी जी प्रीति मनुजाची
स्वार्थी जी प्रीति मनुजाची सहज ती ॥
परि साधे जो स्वार्थ परार्थी, उत्तम तो गणिती ॥
स्वार्थ परार्थाइतुका असतां, मध्यम त्या म्हणती ॥
ज्यांत न जनहित त्या स्वार्थाला साधु अधम वदती ॥
परि साधे जो स्वार्थ परार्थी, उत्तम तो गणिती ॥
स्वार्थ परार्थाइतुका असतां, मध्यम त्या म्हणती ॥
ज्यांत न जनहित त्या स्वार्थाला साधु अधम वदती ॥
गीत | - | गो. ब. देवल |
संगीत | - | गो. ब. देवल |
स्वर | - | रामदास कामत |
नाटक | - | शारदा |
चाल | - | रंगैया मनिगे बारानो |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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