सुखचि सदा कधीं मिळत
सुखचि सदा कधीं मिळत न कवणा । मिश्ररूप जग ।
सुखचि रिघे अघ । दु:खातुनि हो जन्म सुखांना ॥
हो जरि आशा मात्र सुखवशा । करित विधि तरी अंतिं निराशा ।
रमत मतिहि नच प्राप्त सुखिंहि मग । करि अवमाना ॥
सुखचि रिघे अघ । दु:खातुनि हो जन्म सुखांना ॥
हो जरि आशा मात्र सुखवशा । करित विधि तरी अंतिं निराशा ।
रमत मतिहि नच प्राप्त सुखिंहि मग । करि अवमाना ॥
गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
स्वर | - | |
नाटक | - | एकच प्याला |
राग | - | छायानट |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | नाचत धी धी |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
टीप - • या गीताचे मूळ ध्वनीमूद्रण आमच्याकडे नाही. आपल्याकडे असल्यास, कृपया aathavanitli.gani@gmail.com या इ-पत्त्यावर पाठवा. ते रसिकांना ऐकण्यासाठी इथे उपलब्ध करून दिले जाईल. |
अघ | - | पाप. |
मति | - | बुद्धी / विचार. |
रिघणे | - | शिरणे / प्रवेशणे. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.