प्रणतनाथ रक्षि कान्त
प्रणतनाथ ! रक्षि कान्त । करि तदीय असुख शांत ॥
अशुभा ज्या योजिं दैव । पतिंलागीं, त्या सदैव ।
परिणमवी मंगलांत ॥
अशुभा ज्या योजिं दैव । पतिंलागीं, त्या सदैव ।
परिणमवी मंगलांत ॥
गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
स्वर | - | |
नाटक | - | एकच प्याला |
राग | - | तिलककामोद |
ताल | - | एकताल |
चाल | - | अब तो लाज |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
टीप - • या गीताचे मूळ ध्वनीमूद्रण आमच्याकडे नाही. आपल्याकडे असल्यास, कृपया aathavanitli.gani@gmail.com या इ-पत्त्यावर पाठवा. ते रसिकांना ऐकण्यासाठी इथे उपलब्ध करून दिले जाईल. |
प्रणत | - | नम्र / भक्त. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.