मोहरले मस्त गगन
मोहरले मस्त गगन
सळसळतो धुंद पवन
प्रीतीचे गाई कवन
भिरभिरते बावरी, देहाची भिंगरी !
मंथर अनोखे हे पुकारे
भोवताली दाटले
छंदी अनंगाचे इशारे
रोमरोमी नाचले
नजरेची कस्तुरी दरवळली अंतरी
थरथरली शर्वरी रे साजणा !
चंचल नशेचे हे उखाणे
लोचनांनी छेडिले
फंदी तरंगांचे पिसारे
अंतरंगी रंगले
श्वासांची मोहिनी लखलखली अंबरी
धुंदी ही वादळी रे साजणा !
सळसळतो धुंद पवन
प्रीतीचे गाई कवन
भिरभिरते बावरी, देहाची भिंगरी !
मंथर अनोखे हे पुकारे
भोवताली दाटले
छंदी अनंगाचे इशारे
रोमरोमी नाचले
नजरेची कस्तुरी दरवळली अंतरी
थरथरली शर्वरी रे साजणा !
चंचल नशेचे हे उखाणे
लोचनांनी छेडिले
फंदी तरंगांचे पिसारे
अंतरंगी रंगले
श्वासांची मोहिनी लखलखली अंबरी
धुंदी ही वादळी रे साजणा !
गीत | - | वंदना विटणकर |
संगीत | - | डी. एस्. रुबेन |
स्वर | - | पुष्पा पागधरे |
गीत प्रकार | - | भावगीत |
अनंग | - | मदन. |
कवन | - | काव्य. |
कस्तुरी | - | एक अतिशय सुगंधी द्रव्य. |
फंद | - | नाद / व्यसन. |
फंदी | - | नादी, छांदिष्ट. |
मंथर | - | मंद, हळू चालणारा. |
शर्वरी | - | रात्र. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.