लोळत कच मुखमधुवरि
लोळत कच मुखमधुवरि, त्यांसि तोंचि कर निवारि !
भ्रमरयोग कमलभोग, या धर्मा दूर न करि ॥
शिक्षेला कच न पात्र; देवयानि, तूंचि शपथ,
सफलकाम नलिनिनाथ दुखवि न वनिं कच यापरि ॥
भ्रमरयोग कमलभोग, या धर्मा दूर न करि ॥
शिक्षेला कच न पात्र; देवयानि, तूंचि शपथ,
सफलकाम नलिनिनाथ दुखवि न वनिं कच यापरि ॥
गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, हिराबाई बडोदेकर |
स्वर | - | विश्वनाथ बागुल |
नाटक | - | विद्याहरण |
राग | - | पहाडी |
ताल | - | एक्का |
चाल | - | जोबन मदभर चलि आई |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
कच | - | केस / बृहस्पतीपुत्र. हा पुष्कळ दिवस शुक्राचार्यांजवळ राहून संजीवनी विद्या शिकला. शुक्राचार्यांच्या कन्येचे, देवयानीचे, याच्यावर प्रेम होते. |
नलिनी | - | कमळ. |
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