लागी कलेजवा कटार
सखी सावरी, भई बावरी
सावरिया से नैना हो गये चार
हाये राम, लागी कलेजवा कटार
बूँद ना गिरी एक लहू की, कछु ना रही निसानी
मन घायल, पर, तन पे छाई, मीठी टीस सुहानी
सखि मैं, तो सुधबुध बैठि बिसार
हाये राम, लागी कलेजवा कटार
प्रीत की रीत सखी ना जानू
जीत हुई या हार न मानू
जियरा करे इकरार, अब मोरा
हाये राम, लागी कलेजवा कटार
सावरिया से नैना हो गये चार
हाये राम, लागी कलेजवा कटार
बूँद ना गिरी एक लहू की, कछु ना रही निसानी
मन घायल, पर, तन पे छाई, मीठी टीस सुहानी
सखि मैं, तो सुधबुध बैठि बिसार
हाये राम, लागी कलेजवा कटार
प्रीत की रीत सखी ना जानू
जीत हुई या हार न मानू
जियरा करे इकरार, अब मोरा
हाये राम, लागी कलेजवा कटार
गीत | - | पुरुषोत्तम दारव्हेकर |
संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
स्वराविष्कार | - | ∙ पं. जितेंद्र अभिषेकी ∙ पं. वसंतराव देशपांडे ∙ फैयाज ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
नाटक | - | कट्यार काळजात घुसली |
राग | - | पहाडी |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
टीस | - | तीव्र वेदना, दर्द. |
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