कुटिलपणा कळला सारा
कुटिलपणा कळला सारा । जाळीं जीवा तो निखारा ॥
पतिच्या मुखिं मधु पोटिं हलाहल । स्त्रीला छळिती साधुनियां कीं वैरा ॥
पतिच्या मुखिं मधु पोटिं हलाहल । स्त्रीला छळिती साधुनियां कीं वैरा ॥
गीत | - | ना. वि. कुलकर्णी |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव, विनायकबुवा पटवर्धन |
स्वर | - | मास्टर दुर्गाराम |
नाटक | - | संत कान्होपात्रा |
राग | - | मांड |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | करमदिया |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.