कशि तुज समजावुं सांग
कशि तुज समजावुं सांग?
कां भामिनि उगिच राग?
हास्याहुनि मधु रुसवा
हेमंतीं उष्ण हवा
संध्येचा साज नवा
हा का प्रणयानुराग?
चांफेकळि केविं फुले?
ओष्ठकमल जेविं उले?
भोंवतिं मधु गंध पळे
कां प्रसन्न वदन-राग?
वृत्तींचा होम अमुप
त्यांत जाळुं गे विकल्प
होउनियां निर्विकल्प
अक्षय करुं यज्ञयाग
ओठांचे फेड बंध
गाइं गडे मुक्त छंद
श्वासांचे करुं प्रबंध
हृदयांचें मधु प्रयाग
कां भामिनि उगिच राग?
हास्याहुनि मधु रुसवा
हेमंतीं उष्ण हवा
संध्येचा साज नवा
हा का प्रणयानुराग?
चांफेकळि केविं फुले?
ओष्ठकमल जेविं उले?
भोंवतिं मधु गंध पळे
कां प्रसन्न वदन-राग?
वृत्तींचा होम अमुप
त्यांत जाळुं गे विकल्प
होउनियां निर्विकल्प
अक्षय करुं यज्ञयाग
ओठांचे फेड बंध
गाइं गडे मुक्त छंद
श्वासांचे करुं प्रबंध
हृदयांचें मधु प्रयाग
गीत | - | बा. भ. बोरकर |
संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
स्वराविष्कार | - | ∙ पं. जितेंद्र अभिषेकी ∙ बबनराव नावडीकर ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
गीत प्रकार | - | भावगीत |
टीप - • काव्य रचना- २६ ऑक्टोबर १९३२. • स्वर- पं. जितेंद्र अभिषेकी, संगीत- पं. जितेंद्र अभिषेकी. • स्वर- बबनराव नावडीकर, संगीत- ???. |
अमुप | - | अमाप. |
केविं | - | कशा प्रकारे. |
जेवी | - | जसा, ज्याप्रमाणे. |
प्रबंध | - | तजवीज. |
प्रयाग | - | संगम. |
भामिनी | - | स्त्री. |
याग | - | पूजा. |
विकल्प | - | संशय / संदेह. |
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