कांता मजसि तूंचि
कांता मजसि तूंचि, गुरूहि तूंचि, तुजसि निर्मी नेता विधाता ॥
बिकट रणीं मज शास्ता आतां तुझें भाषण;
कधिं न आप्ता रणीं वधिन, तूंचि रणाला नियंता ॥
बिकट रणीं मज शास्ता आतां तुझें भाषण;
कधिं न आप्ता रणीं वधिन, तूंचि रणाला नियंता ॥
गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
संगीत | - | भास्करबुवा बखले |
स्वराविष्कार | - | ∙ अजितकुमार कडकडे ∙ पं. राम मराठे ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
नाटक | - | स्वयंवर |
राग | - | सारंग |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | साची कहतयाकि |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
कांता | - | पत्नी. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.