अशि नटे ही चारुता
अशि नटे ही चारुता ।
सतनु काय, विसरवि स्मृति । वरित सार्थता ॥
नयनिं तरलता, नाचत खेळत ।
विभविं नव दिसत हास्य लास्य ॥
सतनु काय, विसरवि स्मृति । वरित सार्थता ॥
नयनिं तरलता, नाचत खेळत ।
विभविं नव दिसत हास्य लास्य ॥
गीत | - | ना. वि. कुलकर्णी |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव, विनायकबुवा पटवर्धन |
स्वराविष्कार | - | ∙ शरद जांभेकर ∙ विनायकबुवा पटवर्धन ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
नाटक | - | संत कान्होपात्रा |
राग | - | तिलंग |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | तदियना तारेदानी |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
चारू | - | सुंदर. |
लास्य | - | नृत्य. |
विभव | - | संपत्ती, ऐश्वर्य. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.