विठ्ठला समचरण तुझे
विठ्ठला, समचरण तुझे धरिते
रूप सावळे दिव्य आगळे, अंतर्यामी भरते
नेत्रकमल तव नित् फुललेले
प्रेममरंदे किती भरलेले
तव गुण-गुंजी घालीत रुंजी
मानस-भ्रमरी फिरते
अरुण-चंद्र हे जिथे उगवती
प्रसन्न तव त्या अधरावरती
होऊन राधा माझी प्रीती
अमृतमंथन करिते
जनी लाडकी नामयाची
गुंफुन माला प्राणफुलांची
अर्पुन कंठी मुक्तीसाठी
अविरत दासी झुरते
रूप सावळे दिव्य आगळे, अंतर्यामी भरते
नेत्रकमल तव नित् फुललेले
प्रेममरंदे किती भरलेले
तव गुण-गुंजी घालीत रुंजी
मानस-भ्रमरी फिरते
अरुण-चंद्र हे जिथे उगवती
प्रसन्न तव त्या अधरावरती
होऊन राधा माझी प्रीती
अमृतमंथन करिते
जनी लाडकी नामयाची
गुंफुन माला प्राणफुलांची
अर्पुन कंठी मुक्तीसाठी
अविरत दासी झुरते
गीत | - | पी. सावळाराम |
संगीत | - | वसंत प्रभु |
स्वर | - | लता मंगेशकर |
राग | - | नट, भूप |
गीत प्रकार | - | विठ्ठल विठ्ठल, भक्तीगीत |
अंतर्यामी | - | अंत:करण / मन. |
अधर | - | ओठ. |
अरुण | - | तांबुस / पिंगट / पहाट, पहाटेचा तांबुस प्रकाश / सूर्यसारथी / सूर्य. |
अविरत | - | अखंड. |
आगळा | - | अग्रेसर / श्रेष्ठ / जास्त / अधिक / वैशिष्ट्यपूर्ण. |
गुंजन | - | गुणगुण. |
मरंद (मकरंद) | - | फुलातील मध. |
मानस | - | मन / चित्त / मानस सरोवर. |
रुंजी | - | गुणगुणत घातलेली चक्कर. |
समचरण | - | पाय. |
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