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विराट ज्ञानी कोंदटला

विराट ज्ञानी कोंदटला सुमनीं ॥

सुमन रेणु चराचरभुवनीं, परि तें कृष्ण जाण;
कणकण असे महाजन, कारण मागें उभा धनी ॥