शांत दांत कांते
शांत दांत कांते
तात वचे मन सचिंत हे भ्रमले
तिमिर उरी भरले
जीवन मम गे, तेच तुझे मन
दैवयोगे जगी आपुले जुळले
तात वचे मन सचिंत हे भ्रमले
तिमिर उरी भरले
जीवन मम गे, तेच तुझे मन
दैवयोगे जगी आपुले जुळले
गीत | - | राजा बढे |
संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
स्वर | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
नाटक | - | धाडिला राम तिने का वनी? |
राग | - | शुद्ध कल्याण |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
दांत | - | सोशिक. |
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