राधिका चतुर बोले
राधिका चतुर बोले
"तुझीमाझी प्रीत जुळे, कान्हा."
चल प्रीतिपंख पसरू
गगनी स्वैर फिरू
गिरीशिखर सागरांना
लंघुनी मेघांना.
नवलाख दिव्य रमणी
मंगलमय गाणी
आळविती गगनी
मधि कांत शांत हसरा
करिती फेर पुरा.
ही तेजाची गंगा
चल चल श्रीरंगा
घालु इथे पिंगा
करू प्रेम अमर अपुले.
"तुझीमाझी प्रीत जुळे, कान्हा."
चल प्रीतिपंख पसरू
गगनी स्वैर फिरू
गिरीशिखर सागरांना
लंघुनी मेघांना.
नवलाख दिव्य रमणी
मंगलमय गाणी
आळविती गगनी
मधि कांत शांत हसरा
करिती फेर पुरा.
ही तेजाची गंगा
चल चल श्रीरंगा
घालु इथे पिंगा
करू प्रेम अमर अपुले.
गीत | - | शांताराम आठवले |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
स्वर | - | जयश्री |
चित्रपट | - | शेजारी |
ताल | - | केरवा |
गीत प्रकार | - | चित्रगीत, हे श्यामसुंदर |
कांत | - | पती. |
रमणी | - | सुंदर स्त्री / पत्नी. |
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