प्रिये पहा रात्रींचा समय सरुनि
प्रिये पहा रात्रींचा समय सरुनि येत उषःकाल हा ॥
थंडगार वात सुटत । दीपतेज मंद होत ।
दिग्वदनें स्वच्छ करित । अरुण पसरि निज महा ॥
पक्षि मधुर शब्द करिति । गुंजारव मधुप वरिति ।
विरलपर्ण शाखि होति । विकसन ये जलरुहा ॥
सुखदुःखा विसरुनियां । गेलें जें विश्व लया ।
स्थिति निज ती सेवाया । उठलें कीं तेंची अहा ॥
थंडगार वात सुटत । दीपतेज मंद होत ।
दिग्वदनें स्वच्छ करित । अरुण पसरि निज महा ॥
पक्षि मधुर शब्द करिति । गुंजारव मधुप वरिति ।
विरलपर्ण शाखि होति । विकसन ये जलरुहा ॥
सुखदुःखा विसरुनियां । गेलें जें विश्व लया ।
स्थिति निज ती सेवाया । उठलें कीं तेंची अहा ॥
गीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर |
संगीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर |
स्वराविष्कार | - | ∙ छोटा गंधर्व ∙ प्रभाकर कारेकर ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
नाटक | - | सौभद्र |
राग | - | देसकार, भूप |
ताल | - | दादरा |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
अरुण | - | तांबुस / पिंगट / पहाट, पहाटेचा तांबुस प्रकाश / सूर्यसारथी / सूर्य. |
मधुप | - | भुंगा, भ्रमर. |
रुह | - | वाढवणारा. |
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