प्रेमसखा उद्धरि जिवाला
जननि चलाचला, प्रीति जीवकला;
लोल लोकां सूत्र असे अचला प्रीतिलीला.
प्रेमसखा उद्धरि जिवाला;
हा जन्मतांच ब्रह्मा साक्षात आला;
देवधर्ममहिमा धरि खरा प्रेमा;
तारण्या जगाला देव प्रीत झाला ॥
ईशाचे नामा-स्वरूपा-पहाया, मिळाया
विशाल मार्ग सोपा प्रेम मला ॥
लोल लोकां सूत्र असे अचला प्रीतिलीला.
प्रेमसखा उद्धरि जिवाला;
हा जन्मतांच ब्रह्मा साक्षात आला;
देवधर्ममहिमा धरि खरा प्रेमा;
तारण्या जगाला देव प्रीत झाला ॥
ईशाचे नामा-स्वरूपा-पहाया, मिळाया
विशाल मार्ग सोपा प्रेम मला ॥
गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
संगीत | - | हिराबाई बडोदेकर, गंधर्व नाटक मंडळी |
स्वर | - | बालगंधर्व |
नाटक | - | विद्याहरण |
राग | - | जिल्हा, धानी |
ताल | - | दादरा |
चाल | - | जाको सखि |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
लोल | - | चंचल / आसक्त. |
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