परम गहन ईशकाम
परम गहन ईशकाम । विश्वा जरि पुण्यधाम ।
मनुजा तरी गूढ चरम । चिर अभेद्य साचे ।
क्रीडा दैवी विराट । मनुजसृजन क्षुद्र त्यांत ।
मानुषी मनीषा । गणन काय त्याचे? ॥
मनुजा तरी गूढ चरम । चिर अभेद्य साचे ।
क्रीडा दैवी विराट । मनुजसृजन क्षुद्र त्यांत ।
मानुषी मनीषा । गणन काय त्याचे? ॥
गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
स्वर | - | अजितकुमार कडकडे |
नाटक | - | एकच प्याला |
राग | - | भूप |
ताल | - | एकताल |
चाल | - | रतन रजक कनक |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
चरम | - | शेवटला. |
चिर | - | दीर्घ कालपर्यंत. |
सृजन | - | निर्मिती. |
साच | - | खरे, सत्य / पावलाचा किंवा हालचालीचा आवाज. |
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