नच देहा विसरलें
देहा विसरलें नच; मग सुख जाणा हीन वासना ॥
अभ्यास सतत सकलहि केला,
डोल फोल नकळता पळाला;
देहसंग परि बुद्धि सोडिना ॥
अभ्यास सतत सकलहि केला,
डोल फोल नकळता पळाला;
देहसंग परि बुद्धि सोडिना ॥
गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
स्वर | - | इंदिराबाई खाडिलकर |
नाटक | - | मेनका |
राग | - | भैरवी |
ताल | - | त्रिताल |
चाल | - | राजामानिवे |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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