खचित उगिच भय
खचित उगिच भय दापी मजला ।
असतां गुरुवरि भार सगळा ।
अशुभ घोर तो माझा सरला ॥
तापवि भानु किती जरि भूला ।
विमल मेघ परि वर्षुनि सु-जलां ।
करि तो झडकरि शांततेला ॥
असतां गुरुवरि भार सगळा ।
अशुभ घोर तो माझा सरला ॥
तापवि भानु किती जरि भूला ।
विमल मेघ परि वर्षुनि सु-जलां ।
करि तो झडकरि शांततेला ॥
गीत | - | ना. वि. कुलकर्णी |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव, विनायकबुवा पटवर्धन |
स्वर | - | बालगंधर्व |
नाटक | - | संत कान्होपात्रा |
राग | - | काफी |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | चरन धरन मन |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
दापणे | - | दटावणे. |
भानू | - | सूर्य. |
विमल | - | स्वच्छ / निर्मल / पवित्र / पांढरा / सुंदर. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.