कसें दैव खेळतें
कसें दैव खेळतें । मनुजाशीं तें ॥
रूपगुण-संपत्ती ऐशी । योजि दीनजनीं कशी ।
क्रौर्यराशि ज्ञानवंता गमे तें ॥
रूपगुण-संपत्ती ऐशी । योजि दीनजनीं कशी ।
क्रौर्यराशि ज्ञानवंता गमे तें ॥
गीत | - | श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर |
संगीत | - | श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर |
स्वर | - | बालगंधर्व |
नाटक | - | मूकनायक |
चाल | - | अधा जान लेती |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.