करांत उरली केवळ मुरली
करांत उरली केवळ मुरली, उरांत हे काहूर
हरवले मधु मुरलीचे सूर ॥
हा मुरलीधर ! प्रभु विश्वंभर, वेणु मिरवतो वक्षी
दैवगतीने तोच जाहला विध्वंसाचा साक्षी
भासतो जवळ असोनी दूर ॥
हरवले मधु मुरलीचे सूर ॥
हा मुरलीधर ! प्रभु विश्वंभर, वेणु मिरवतो वक्षी
दैवगतीने तोच जाहला विध्वंसाचा साक्षी
भासतो जवळ असोनी दूर ॥
गीत | - | पुरुषोत्तम दारव्हेकर |
संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
स्वर | - | बकुळ पंडित |
नाटक | - | कट्यार काळजात घुसली |
राग | - | मिश्र भैरवी |
ताल | - | केहरवा |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
काहूर | - | मनातील गोंधळ, बेचैनी. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.