कंठातच रुतल्या ताना
कंठातच रुतल्या ताना
कुठे ग बाई कान्हा?
कुणीतरी जा, जा, जा, जा, घेउनी या मोहना
कदंब फांद्यावरी बांधिला
पुष्पपल्लवगंधित झोला
कसा झुलावा परि हा निश्चल, कुंजविहारीविना
थांबे सळसळ जशी वृक्षांची
कुजबुज सरली झणि पक्ष्यांची
ओळखीचे स्वर कानी न येता, थबके ही यमुना
मुरलीधर तो नसता जवळी
सप्तस्वरांची मैफल कुठली?
रासक्रिडेची स्वप्ने विरली, एका कृष्णाविना
कुठे ग बाई कान्हा?
कुणीतरी जा, जा, जा, जा, घेउनी या मोहना
कदंब फांद्यावरी बांधिला
पुष्पपल्लवगंधित झोला
कसा झुलावा परि हा निश्चल, कुंजविहारीविना
थांबे सळसळ जशी वृक्षांची
कुजबुज सरली झणि पक्ष्यांची
ओळखीचे स्वर कानी न येता, थबके ही यमुना
मुरलीधर तो नसता जवळी
सप्तस्वरांची मैफल कुठली?
रासक्रिडेची स्वप्ने विरली, एका कृष्णाविना
गीत | - | गंगाधर महाम्बरे |
संगीत | - | श्रीनिवास खळे |
स्वर | - | आशा भोसले |
राग | - | बागेश्री, गोरख कल्याण |
गीत प्रकार | - | हे श्यामसुंदर, भावगीत |
कुंजविहारी | - | कृष्णाचे एक नाव. |
कदंब (कळंब) | - | वृक्षाचे नाव. |
झणी | - | अविलंब. |
झोला | - | झोका. |
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