कान्ता वंचिता निज पतिता
कान्ता वंचिता निज पतिला संसारी ।
कठिण खड्ग न्याय करिल । अजि करिं धरितां ॥
सदनीं काय वैर्यांना । देई ठाव कुलांगना?
कुलांगारिणी ती पतिता ॥
कठिण खड्ग न्याय करिल । अजि करिं धरितां ॥
सदनीं काय वैर्यांना । देई ठाव कुलांगना?
कुलांगारिणी ती पतिता ॥
गीत | - | वसंत शांताराम देसाई |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
स्वर | - | प्रकाश घांग्रेकर |
नाटक | - | अमृतसिद्धी |
राग | - | अडाणा |
ताल | - | त्रिताल |
चाल | - | आई करकरा |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
कुलांगार | - | कुलाचा नाश करणारा. |
कांता | - | पत्नी. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.