जन लोका विस्मय हा
जन लोका विस्मय हा
दुंदुभीरव ये मंत्रनिनादे भद्रासनी अभिषेका
नमवी शीर्ष जलकुंभस्त्रावा
मिटे न परि विधिलेखा
द्रववित मन, तनु कंपविकल ती तात राजमुद्रा
दुंदुभीरव ये मंत्रनिनादे भद्रासनी अभिषेका
नमवी शीर्ष जलकुंभस्त्रावा
मिटे न परि विधिलेखा
द्रववित मन, तनु कंपविकल ती तात राजमुद्रा
गीत | - | राजा बढे |
संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
स्वर | - | नारायण बोडस |
नाटक | - | धाडिला राम तिने का वनी? |
राग | - | मियांकी सारंग |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
दुंदुभि | - | नगारा, एक वाद्य. |
भद्र | - | सुशील / नम्र. |
रव | - | आवाज. |
विकल | - | विव्हल. |
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