घेइं मम वचन हें
घेइं मम वचन हें सुगुणमणिमंजिरी ॥
साच तुज वरिन मी भंगुनिहि मन्नियम ।
साक्षि अरुणाक्षि, तो विश्वसाक्षी करी ॥
साच तुज वरिन मी भंगुनिहि मन्नियम ।
साक्षि अरुणाक्षि, तो विश्वसाक्षी करी ॥
| गीत | - | गो. ब. देवल |
| संगीत | - | गो. ब. देवल |
| स्वर | - | श्रीपादराव नेवरेकर |
| नाटक | - | शारदा |
| राग / आधार राग | - | भूप |
| चाल | - | जयति जय सुरसरित |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| अक्ष | - | डोळा. |
| अरुण | - | तांबुस / पिंगट / पहाट, पहाटेचा तांबुस प्रकाश / सूर्यसारथी / सूर्य. |
| मंजिरी | - | मोहोर, तुरा. |
| साच | - | खरे, सत्य / पावलाचा किंवा हालचालीचा आवाज. |
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श्रीपादराव नेवरेकर