गणिसि काय खल माते
गणिसि काय खल माते, अलंकार केवळ कुजनांते ।
न विश्वासलव योग्य जयाते ॥
वद का स्मरसी चिरसहवासी । घडली कृति अनुचित या हाते ।
जनकधर्म कधी त्यजि काय सुते ॥
न विश्वासलव योग्य जयाते ॥
वद का स्मरसी चिरसहवासी । घडली कृति अनुचित या हाते ।
जनकधर्म कधी त्यजि काय सुते ॥
गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
स्वर | - | अजितकुमार कडकडे |
नाटक | - | एकच प्याला |
राग | - | वसंत |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | जपिये नाम काकोजी |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
कूजन | - | आवाज. |
खल | - | अधम, दुष्ट. |
लव | - | सूक्ष्म. |
सुता | - | कन्या. |
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