गा रे कोकिळा गा
भूलोकीच्या गंधर्वा तू, अमृत संगीत गा
गा रे कोकिळा गा
सप्तसुरांचा स्वर्ग उभारून
चराचराला दे संजीवन
अक्षय फुलवित हे नंदनवन, पर्णफुलांतुन गा
कुहुकुहु बोलत मधुर गायनी
मोहित होता सारी अवनि
कुसुमकोमला ही वनराणी, नाचत थयथय गा
मन्मथ मनीचा इंद्रधनूला
शर पंचम तो लावुनी आला
प्रीत भेटता अनुरागाला, मीलन होऊन गा
गा रे कोकिळा गा
सप्तसुरांचा स्वर्ग उभारून
चराचराला दे संजीवन
अक्षय फुलवित हे नंदनवन, पर्णफुलांतुन गा
कुहुकुहु बोलत मधुर गायनी
मोहित होता सारी अवनि
कुसुमकोमला ही वनराणी, नाचत थयथय गा
मन्मथ मनीचा इंद्रधनूला
शर पंचम तो लावुनी आला
प्रीत भेटता अनुरागाला, मीलन होऊन गा
गीत | - | पी. सावळाराम |
संगीत | - | वसंत प्रभु |
स्वर | - | आशा भोसले |
चित्रपट | - | बायकोचा भाऊ |
राग | - | हमीर, केदार |
गीत प्रकार | - | चित्रगीत |
अनुराग | - | प्रेम, निष्ठा. |
अवनि | - | पृथ्वी. |
मन्मथ | - | मदन. |
शर | - | बाण. |
संजीवन | - | पुनुरुज्जीवन. |
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