देवा धरिलें चरण
देवा धरिलें चरण ।
भक्ति सुगति जगिं मजला ।
भाव बोल रुचवि कोण?
सकल तुज विभो, मान ! ॥
सान थोर जिवांसि ।
रक्षितोसि हृषिकेशी ।
अचल तुझ्या पदीं दीन ।
भय नुरवी होत लीन ॥
भक्ति सुगति जगिं मजला ।
भाव बोल रुचवि कोण?
सकल तुज विभो, मान ! ॥
सान थोर जिवांसि ।
रक्षितोसि हृषिकेशी ।
अचल तुझ्या पदीं दीन ।
भय नुरवी होत लीन ॥
गीत | - | ना. वि. कुलकर्णी |
संगीत | - | मास्टर कृष्णराव, विनायकबुवा पटवर्धन |
स्वर | - | पं. राम मराठे |
नाटक | - | संत कान्होपात्रा |
राग | - | भीमपलास |
ताल | - | एकताल |
चाल | - | बन्सीधरके चरन |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत, भक्तीगीत |
नुरणे | - | न उरणे. |
विभू | - | बलाढ्य, महान. |
सान | - | लहान. |
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