दे चरणिं आसरा
दे चरणिं आसरा, देवा
नाही तुझ्याविण थारा दुसरा
कटु संसार असार पसारा
मी अजाण रे बालक दुर्बल
थोर परि मनी भक्तिभाव-बल
जपत रुचिर तव नाम सुमंगल
वितरी चिरसुखशांती अंतरा
नाही तुझ्याविण थारा दुसरा
कटु संसार असार पसारा
मी अजाण रे बालक दुर्बल
थोर परि मनी भक्तिभाव-बल
जपत रुचिर तव नाम सुमंगल
वितरी चिरसुखशांती अंतरा
गीत | - | स. अ. शुक्ल |
संगीत | - | ए. पी. नारायणगांवकर |
स्वर | - | पं. राम मराठे |
गीत प्रकार | - | भक्तीगीत |
असार | - | नीरस / निष्फळ / पोकळ / नि:सत्त्व. |
रुचिर | - | मोहक, सुंदर. |
वितरणे | - | देणे. |
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