बहु असोत सुंदर संपन्न
बहु असोत सुंदर संपन्न कीं महा
प्रिय अमुचा एक महाराष्ट्र देश हा
गगनभेदि गिरिविण अणु नच जिथें उणें
आकांक्षांपुढति जिथें गगन ठेंगणें
अटकेवरि जेथील तुरंगिं जल पिणें
तेथ अडे काय जलाशयनदांविणें?
पौरुषासि अटक गमे जेथ दु:सहा
प्रासाद कशास जेथ हृदयमंदिरें
सद्भावांचींच भव्य दिव्य आगरें
रत्नां वा मौक्तिकांहि मूल्य मुळिं नुरे
रमणीची कूस जिथें नृमणिखनि ठरे
शुद्ध तिचें शीलहि उजळवि गृहा गृहा
नग्न खड्ग करिं, उघडे बघुनि मावळे
चतुरंग चमूचेंही शौर्य मावळे
दौडत चहुंकडुनि जवें स्वार जेथले
भासति शतगुणित जरी असति एकले
यन्नामा परिसुनि रिपु शमितबल अहा
विक्रम वैराग्य एक जागिं नांदती
जरीपटका भगवा झेंडाहि डोलती
धर्म-राजकारण समवेत चालती
शक्तियुक्ति एकवटुनि कार्य साधिती
पसरे यत्कीर्ति अशी विस्मयावहा
गीत मराठ्यांचें श्रवणीं मुखीं असो
स्फूर्ति दीप्ति धृतिहि जेथ अंतरीं ठसो
वचनिं लेखनींहि मराठी गिरा दिसो
सतत महाराष्ट्रधर्म मर्म मनिं वसो
देह पडो तत्कारणिं ही असे स्पृहा
प्रिय अमुचा एक महाराष्ट्र देश हा
गगनभेदि गिरिविण अणु नच जिथें उणें
आकांक्षांपुढति जिथें गगन ठेंगणें
अटकेवरि जेथील तुरंगिं जल पिणें
तेथ अडे काय जलाशयनदांविणें?
पौरुषासि अटक गमे जेथ दु:सहा
प्रासाद कशास जेथ हृदयमंदिरें
सद्भावांचींच भव्य दिव्य आगरें
रत्नां वा मौक्तिकांहि मूल्य मुळिं नुरे
रमणीची कूस जिथें नृमणिखनि ठरे
शुद्ध तिचें शीलहि उजळवि गृहा गृहा
नग्न खड्ग करिं, उघडे बघुनि मावळे
चतुरंग चमूचेंही शौर्य मावळे
दौडत चहुंकडुनि जवें स्वार जेथले
भासति शतगुणित जरी असति एकले
यन्नामा परिसुनि रिपु शमितबल अहा
विक्रम वैराग्य एक जागिं नांदती
जरीपटका भगवा झेंडाहि डोलती
धर्म-राजकारण समवेत चालती
शक्तियुक्ति एकवटुनि कार्य साधिती
पसरे यत्कीर्ति अशी विस्मयावहा
गीत मराठ्यांचें श्रवणीं मुखीं असो
स्फूर्ति दीप्ति धृतिहि जेथ अंतरीं ठसो
वचनिं लेखनींहि मराठी गिरा दिसो
सतत महाराष्ट्रधर्म मर्म मनिं वसो
देह पडो तत्कारणिं ही असे स्पृहा
गीत | - | श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर |
संगीत | - | शंकरराव व्यास |
स्वर | - | जी. एन्. जोशी, ज्योत्स्ना भोळे |
गीत प्रकार | - | स्फूर्ती गीत |
अटक | - | पाकिस्तानमधील पंजाब प्रांतातील सिंधू नदीकाठचे शहर (Attock). राघोबादादा पेशव्यांनी येथपर्यंत धडक मारून मराठी साम्राज्याचा भगवा झेंडा तिथे रोवला होता. |
आगर | - | वसतिस्थान. |
खनि | - | खाण. |
गिरा | - | वाचा, भाषण, बोल. |
गिरी | - | पर्वत, डोंगर. |
चतुरंग सेना | - | हत्ती, घोडे, रथ व पायदळ ही चार अंगे ज्यात आहेत असे सैन्य. |
जव | - | वेग / घाई. |
तत्कारणि | - | त्या कारणा करितां. |
तुरंगा | - | घोडी. |
दु:सह | - | असह्य / कठोर / अवघड. |
दीप्ती | - | तेज. |
धृति | - | धैर्य / दृढता. |
नृमणि | - | नर रत्न. थोर पुरुष. |
पटका | - | फेटा / निशाण / ध्वज / ( जरीपटका - मराठ्यांचे निशाण ). |
परिसा | - | ऐकणे. |
यन्नाम | - | (यत् + नाम) जे नाव. |
रमणी | - | सुंदर स्त्री / पत्नी. |
रिपु | - | शत्रु. |
विस्मयावह | - | विस्मयकारक, आश्चर्यकारक. |
शमणे | - | शांत / स्तब्ध, निश्चल. |
स्पृहा | - | इच्छा / आकांक्षा. |
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