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आज घनु घनु बरसू दे

आज घनु घनु बरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशून देहभान हरपू दे

कालिंदी के तट पर कान्हा
बन्‍सी का है खेल रचायो
गाय बनूं इस पार मैं तरसूं
मृद्गंध ना सह पाऊं रे

आज अधिर मन तरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशुन देहभान हरपू दे

बरसे बरसे मेघ अनावर
भिजले अंग गगनभर होई
श्यामल श्यामल दाटून येता
मनात निर्झर पाझर होई

आज मधुर मधु निरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशुन देहभान हरपू दे